लेखक – राकेश कुमार पांडेय.
पटना स्टेशन से गाड़ी खुल कर थोड़ी तीव्र गति पकड़ी ही थी कि एक दस. ग्यारह साल का बच्चा गीरने से बच बचा कर डब्बे में प्रवेश किया. बढ़े बाल आंखें धसी हुई, फटे बनियान और गंदगी से भरा हाफ पैंट पहना हुआ बच्चा अपनी सांसों पर नियंत्रण कर रहा था. लोगों ने डांटते हुए कहा अगर गिर पड़ता तो? क्या जरूरत थी इस तरह गाड़ी में चढ़ने की? घर से भागे हो क्या? वह कुछ बोला नहीं बस ना में सिर हिलाया.
गाड़ी रफ्तार पकड़ चुकी थी। जैसे जैसे गाड़ी आगे बढ़ती उसके चेहरे के हाव भाव बदलते रहते। कभी आंखों में चमक तो कभी उदासी झलकती.
अगले स्टेशन पर ही डब्बे में टीटी चढ़ा। टिकट चेक करते हुए उस बच्चे के पास आकर बोला कहां जायेगा? लड़के ने कहा अपने गांव. कौन स्टेशन उतरोगे? पौथु लड़के ने जबाब दिया। टिकट लिए हो? नहीं पैसे कम थे इसलिए नहीं लिया. यह कहते हुए 20 का मुड़ा हुआ नोट निकाल कर टीटी की और बढ़ा दिया. लीजिए जहां तक की टिकट बनेगी बना दीजिए. टीटी ने उत्सुकता बस कहा फिर आगे कैसे जाओगे? पैदल लड़के ने फट से जबाब दिया. टीटी ने उसकी मासुमियत देखकर ,स्थिति को ध्यान में रखते हुए पैसा वापस कर दिया और कहा उपर बैठ जाओ अपने स्टेशन पर उतर जाना.
लड़का उपर बैठ गया। काफी देर से घटित हो रहे इन घटनाओं पर ध्यान लगाए बैठे एक अध्यापक शिव शंकर तिवारी ने उस लड़के को अपने पास बुलाया और पूछा. क्या नाम है तेरा? श्रवण उसने तपाक से कहा. कहां से आ रहे हो पटना से ही. पटना में कौन रहता है? कोई नहीं. फिर वहां क्यों गए थे? मजबूरी बस. अध्यापक उसके जबाब से हतप्रभ होते जा रहे थे. उन्होंने फिर पुछा. कैसी मजबूरी? उसने कहा पेट भरने की. शिव शंकर तिवारी ने पूछा पटना में क्या करते थे? उसने कहा एक बाबू के यहां नौकरी. शिवशंकर तिवारी को बच्चे के मासुमियत भरा जबाब ने अपनी और आकर्षित कर लिया था. उन्होंने फिर पूछा. तो भाग क्यों आए? इस सवाल पर लड़के के आंखों में आंसू छा गए. उसने डबडबाई आंखों से कहा जहां नौकरी करता था उस बाबू के घर वाले खूब काम कराते हैं सुबह से देर रात तक साफ सफाई, चाय, पानी, गाड़ी धुलाई से लेकर कपड़े धोना आदि. फिर भी कुछ गलती हो जाती है तो बहुत मारते हैं. मजबूरी में सहना पड़ता है. मां से मिलने के लिए छुट्टी मांगा तो रात को भी लोगों ने मारा. इसलिए सफाई करने के बहाने सुबह उठा और भाग आया, नहीं तो आने नहीं देते.
काफी देर तक शिवशंकर तिवारी उस लड़के में बात होते रही. इस बीच शिवशंकर तिवारी ने गाड़ी में बिकने वाले पावरोटी और चना खरीदकर उसे खिलाया.
गाड़ी श्रवण के उतरने वाले स्टेशन यानि ‘पौथु’ आने ही वाला था. शिवशंकर तिवारी ने पुछा मां के साथ मिलकर तो अब खुश रहोगे न? उसने कहा जी कुछ दिन.
कुछ दिन क्यों? क्योंकि माँ फिर कहीं कमाने भेज देगी. उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि से पूछा क्यों भेज देगी? गाड़ी से उतरते हुए लड़के ने कहा ‘मजबूरी’.
शिवशंकर तिवारी उस लड़के को प्लेटफार्म पर जाते हुए देखते हैं और मंद स्वर में कह पड़ते हैं. ‘मां और मजबूरी’.
इति ——–!