- कैंपस बूम में आज से नई शुरूआत, कहानी, कविता लेखक को मिलेगी जगह
- आज पढ़िए राकेश पांडेय द्वारा लिखित लघु कथा
जमशेदपुर.
मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती – बिलकुल नहीं, मैं कल ही कोर्ट में तलाक की अर्जी दे रही हूं. मेधा ने एक ही सांस में कह डाला था. विवेक पल भर के लिए तो सन्न रह गया फिर संभलते हुए बोला मेधा गुस्से में यूं ही कुछ नहीं बोल देते. माना हमारे विचार किसी मुद्दे पर एक नहीं हैं इसका मतलब हम साथ नहीं रह सकते कहना उचित नहीं.
क्यों उचित नहीं? तुमने हमारा ख्याल रखा ही कब है? हमेशा अपनी धुन में लगे रहते हो. विवेक गृहस्थ जीवन केवल खाना पूर्ति के लिए नहीं होता. तुम्हें देश दुनिया की पड़ी रहती है लेकिन हमारे लिए तुम सोचते नहीं. सुबह घर से निकलते हो देर रात लौटते हो ऐसा कौन सा काम करते हो न ढंग से बात करना न कोई रुचि लेना. मुझे लगता है जरुर तेरे जीवन में कोई आ गयी है.
मेधा के इन बातों ने उसके अंदर के दर्द को झकझोर दिया. विवेक ने सोचा बतला ही दूं सच की आज कल हमारा काम- धंधा ठीक नहीं चल रहा। खर्च के हिसाब से आमदनी नहीं. बजार में अपने को बनाए रखने के लिए मेहनत ज्यादा करना पड़ रहा इसलिए घर परिवार को समय नहीं दे पाता. प्रतिस्पर्धा के चलते दिन रात अवसाद से ग्रसित रहता हूं. लेकिन दूसरे पल उसे ख्याल आया घर में बेटी बड़ी हो रही है उसने अगर सुन लिया तो अपने लक्ष्य से समझौता कर लेगी. मेरी बातों से कहीं मेधा भी विचलित न हो जाए इसलिए चुप रहना ही बेहतर है. उसने बस इतना ही कहा फालतू की बात नहीं सोचते दुनिया में और भी कई गम हैं.
मेधा ने कहा मैं फालतू नही कह रही जो कह रही हूं, वही सच है. मैंने फैसला ले लिया है तुम्हारे साथ अब और नहीं. कल सुबह मैं घर से चली जाऊंगी अपने मायके. तलाक के कागजात बनवा कर भेज दूंगी उसपर साईन कर देना.
विवेक ने कहा एक बार सोच लेना चाहिए बोलने से पहले. मेधा आज पता नहीं किस मुड में थी, उसने कहा अब कुछ नहीं सोचना समझना कल मैं चली अपने रास्ते. इतना कह कर वह दूसरे रुम में चली गई जहां उसकी 10 साल की बेटी अध खुले आंखों के साथ बाहर की बात सुन रही थी और रो रही थी.
मेधा ने रुम का दरवाजा बंद किया लाइट ऑफ की और बिस्तर पर लेट गयी. इधर विवेक उसकी बातों से शॉक्ड हो गया वहीं कुर्सी पर बैठे बैठे कब नींद आ गयी पता न चला. वह दवा खाना भी भुल गया था.
दूसरे सुबह वह अपनी बेटी कामना को लेकर अपने मायके के लिए निकलने लगी तो विवेक ने फिर कहा मेधा एक बार फिर सोच लो. लेकिन मेधा कुछ बोली नहीं और घर से चली गई.
दस साल बाद आज कोर्ट ने उन्हें तलाक के कागजात सौंप दिया. उसके अनुसार विवेक को 50 लाख रुपये मेधा को देने का आदेश भी था, साथ ही लड़की के विवाह का खर्च अलग से देने का आदेश था. विवेक आदेश की कॉपी लिए बिना कोर्ट से बाहर निकल कर एक चाय दुकान पर बैठा था.
थोड़ी देर बाद मेधा भी आकर उसके पास ही बेंच पर बैठ गयी. विवेक ने अदरक वाली दो चाय के आदेश दिया. उसे पता था मेधा अदरक वाली चाय पसंद करती है. चाय की चुस्कियों के साथ विवेक ने कहा मेधा कोर्ट के आदेश अनुसार हमें 50 लाख देना है. फिलहाल मैं इतनी रकम नहीं दे सकता. तुम कानपुर वाला मकान रख लो उसकी कीमत उससे ज्यादा ही होगी. गहना वगैरह सब रख लो बिटिया की शादी में काम आएगा. कल ही डाक्टर ने कहा है कि बा मुश्किल मैं एक साल और जीवित रहूंगा उसके बाद इलाहाबाद का यह घर भी तेरा ही होगा. चूंकि बाबूजी का बनाया यह मकान का इकलौता बारिश मैं ही हूं इसलिए कल इसी कोर्ट में उस मकान की रजिस्ट्री कर दूंगा. बस एक आग्रह होगा बिटिया का विवाह ठीक से कर देना. इतना कहकर वह चाय वाले का पैसा देने उठा आंखों में आंसू भरे हुए थे. विवेक की बात सुनकर मेधा की मेधा जगी और वह फूट फूट कर रोने लगी.
मेधा ने अपने पर्स से तलाक वाला कागज निकालकर फाड़ दिया और विवेक के सीने से लगकर रोने लगी.
इति……….
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तस्वीर प्रतिकात्मक के तौर पर इंटरनेट से ली गयी है.