अनिशा श्रीवास्तव, जमशेदपुर
हिंदी खोज रही अपनी साथी
चलो बताती हूं आज की स्तिथि,
हिंदी खोज रही अपनी साथी,
जो उसके साथ जीवन भर चले,
बिना किसी शर्म
बिना लिए कोई शिकवे गिले,
हिंदी की तो थी बड़ी ही ख्याति,
पर आज ढूंढ रही अपनी साथी,
जिसे ना हो उसपे शर्म, ना हो कोई भ्रम,
करे जो उसपे पुरा विश्वास,
थामेगी वो उसका हाथ,
चलो बताती हूं आज की स्तिथि,
हिंदी खोज रही अपनी साथी,
भारत की वो बेटी है,
फिर भी आज अकेली हैं,
है तो वो हमारी अधिकारी भाषा,
फिर भी हमे नहीं है उससे कोई आशा,
विश्वास नहीं हमे की देगी हमे वह उचाई,
जहा होगी हमारी बड़ाई,
इसलिए भाग रहे दूसरों के पीछे
भूल कर अपनी भाषा,
जरा रुको और पहचानो यह है हमारी हिंदी भाषा,
चलो बताती हूं आज की स्तिथि,
हिंदी खोज रही अपनी साथी,
हमे देना है इसका साथ,
वापस से बनाना है इसे विख्यात,
करनी है पूरी इसकी खोज,
बोले सब हिंदी बिना कोई बोझ,
करे इस पर गर्व
क्योंकि यह है हमारी असली पहचान,
नहीं है यह भाषा कोई अंजान,
आयो मित्रों थामो हिंदी का हाथ,
इसका नहीं, दो खुद का साथ ,
चलो बताती हूं आज की स्तिथि,
हिंदी खोज रही अपनी साथी.
इस कविता की लेखिका अनिशा श्रीवास्तव, सरायकेला खरसावां जिला जगन्नाथपुर बोलायडीह स्थित नव ज्योजि विद्या मंदिर स्कूल में शिक्षिका के तौर पर कार्यरत हैं.