- कोलकाता कुकृत्य पर पढ़िए युवा कवि वरुण प्रभात की ये कविता
वरुण प्रभात.
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गूँजा था मेरी कानों में
तुम्हारे झंकृत शब्द
जो नारे की शक्ल में
चढ़ गया था हरेक जुबा पर
बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ
देखा तुम्हारे जलवे
कठुआ से हाथरस तक
दिल्ली के जंतर मंतर पर
और मणिपुर में तुम्हारे
नारे की सार्थकता
दुर्योधन की जांघ को
थपथपा रही थी
मैंने देखा कृष्ण वेशधारी
दुःशासन को
लड़की हूँ लड़ सकती हूँ
हां मैं मोमिता
लड़ी खूब लड़ी
अनगिन नपुंसकों से
कटने,छीलने ,टूटने के बाद भी
तबतक लड़ी जबतक
टूट नहीं गयी मेरी सांसे
वीर्य से सने मेरे जिस्म को
दुनिया ने देखा
मेरे कटे होठ, नूचे बाल
अनगिन घावों के निशान
प्रमाण है इस बात का
कि ” लड़की हूँ,लड़ सकती हूँ”
तुम्हारे लिए यह सिर्फ नारा था
मेरे लिए मेरा वजूद
अब सच में लड़ना
नारा मत देना
मुझपर तुम्हारी चुप्पी
औरतपन को बांझ बना देगी