Tag: Poem

सन्नाटे छाये गलियों में, थर थर काँपता है देह, ये पूस की रात भयावह….

प्रियंका कुमारी, कैंपस बूम. ये पूस की रात भयावह सिकुड़ रहीं हैं…

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मगध का पाषाण पुरुष: दशरथ मांझी कथा-काव्य पर परिचर्चा

जमशेदपुर. अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य भारती के प्रदेश अध्यक्ष डॉ.अरुण सज्जन की चौबीसवीं…

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मुश्किलें भयावह शिथिल सी, अंगड़ाइयांं सब असहज होती है, कहां जिंदगी आसान होती है

जमशेदपुर. "जिंदगी आसान नहीं होती " कहां जिंदगी आसान होती है,जहां भी…

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