Tag: Poem

मुझे उस कोरे कागज को, इस तरह देखना गवारा न था…..

निवेदिता श्रीवास्तव "गार्गी". कोरा कागज उस कोरे कागज पर , अपने मन…

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शांति और समावेशन यही होना चाहिए कविता का स्वर: डॉ एके झा

विश्व कविता दिवस पर एलबीएसएम कॉलेज के अंग्रेजी विभाग के लिटरेरी क्लब…

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सौ-सौ दुःखों को तू सीने मे दबाकर चेहरे पे रखती, तू जगतजननी है

- अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में नारी के सम्मान में मनोज…

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ठान ले अगर कुछ भी तो तू सब पर भारी है क्योंकि तू नारी है….

- महिला दिवस पर वरीय पत्रकार, लेखिका अन्नी अमृता की कलम से…

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आज़ादी का झंडा अपना, तन मन उर्जित करता है, नागरिकता के भावों से, हृदय पटल सहलाता है

संध्या सिन्हा 'सूफ़ी'. गणतंत्र की कविता लहरा है फिर शान तिरंगा भारत…

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सन्नाटे छाये गलियों में, थर थर काँपता है देह, ये पूस की रात भयावह….

प्रियंका कुमारी, कैंपस बूम. ये पूस की रात भयावह सिकुड़ रहीं हैं…

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