- एलबीएसएम कॉलेज में दो दिवसीय (11 एवं 12 अप्रैल) “इम्पैक्ट एंड चैलेंजस ऑफ़ एआई ऑन ग्लोबल सिनेरियो” विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का हुआ शुभारंभ
- एलबीएसएम कॉलेज, आइक्यूएसी तथा टूकॉन रिसर्च एंड डेवलपमेंट, बंगलुरू, प्रज्ञा रिसर्च एसोसिएशन, अखिल भारतीय जनकल्याण शैक्षिक संघ की ओर से आयोजित है सेमिनार
- कोल्हान विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ प्रो अंजिला गुप्ता बतौर मुख्य अतिथि और सेमिनार की मुख्य संरक्षक के तौर पर उदद्याटन सत्र में हुई शामिल
- हमारे प्राचीन ग्रंथों, शास्त्रों और साहित्यों में एआई की अवधारणा के कई सुक्ष्म प्रमाण मौजूद है: डॉ अंजिला गुप्ता
वर्तमान में एआई यानी आर्टिफिशिएल इंटेलीजेंस (कृत्रिम बुद्धिमता) की खूब चर्चा है. पूरी दुनिया एआई पर केंद्रित होकर कार्य कर रही है. यह एक क्रांति के रूप में सामने आया है. लेकिन एआई का इस्तेमाल विकास की ओर ले जाएगा या विनाश की ओर यह तो भविष्य तय करेगा. यह बातें कोल्हान विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ प्रो अंजिला गुप्ता ने करनडीह स्थित एलबीएसएम कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय (11 एवं 12 अप्रैल) “इम्पैक्ट एंड चैलेंजस ऑफ़ एआई ऑन ग्लोबल सिनेरियो” विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के उदद्याटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि बोल रही थी. उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का उपयोग करने से पहले मनुष्य के पास अपना इंटेलिजेंस होना चाहिए, ताकि इस तकनीक का हम सही तरीके से उपयोग कर सकें. हमें इस पर ध्यान देना होगा कि हम मानवीय बुद्धिमत्ता और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बीच संतुलन कैसे बना सकते हैं.
रामायण महाभारत के श्लोकों में यंत्र, यांत्रिक शब्द का उपयोग : कुलपति
कुलपति ने अपने संबोधन में एआई के विभिन्न पहलूओं पर चर्चा करते हुए कहा कि पूरी दुनिया जिस आर्टिफिशिएल इंटेलीजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमता पर इतनी तेज गति से काम कर रही है इसकी अवधारणा हमारे प्राचीन ग्रंथों, शास्त्रों और साहित्यों में देखने को मिलते हैं. कुलपति ने रामायण, महाभारत से कई संदर्भों को उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया और बताया कि किस तरह से आज जो कृत्रिम बुद्धिमता की बात कही जा रही है उस दौर में वह विशेष ज्ञान यानी आत्म बुद्धि के रुप में देखने को मिलती है. रामायण महाभारत के कई श्लोकों में यंत्र, यांत्रिक शब्दों के उपयोग को कुलपति ने बताया कि यह साबित करता है कि उस दौरान ही तकनीक और इस कृत्रिम बुद्धिमता का बीज लगा दिया गया था.
बेरोजगारी बढ़ायेगा या रोजगार, कहना मुश्किल
कोल्हान विवि की कुलपति डॉ अंजिला गुप्ता एआई के संबंध में अपने अनुभवों के आधार पर काफी स्पष्ट शब्दों में बातों को रख रही थी, उन्होंने कहा कि जिस आर्टिफिशिएल इंटेलीजेंस को लेकर इंतनी चर्चा और दुनिया भर में काम हो रहे हैं. हमारे देश में युवाओं की संख्या अधिक है, इस युवा देश में एआई बेरोज़गारी बढ़ाएगा या उसे घटाने में सहयोगी होगा, यह एक बड़ा सवाल है। वहीं उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि झारखंड जो देश के एक जनजाति और आदिवासी बहुल प्रदेश के रूप में जाना जाता हैं, यहां एआई का क्या इंपैक्ट पड़ेगा और यह किस तरह से यहां के लोगों को प्रभावित करेगा. हालांकि उन्होंने कहा कि यहां की संस्कृति, परंपरा काफी प्राचीन और समृद्ध है लेकिन ग्लोबल स्तर पर इन्हें पहचान नहीं मिली है. उन्होंने उम्मीद जताई कि हो सकता है एआई झारखंड की संस्कृति परंपरा को बढ़ाने में मददगार हो और लोगों को जड़ों से जोड़ने में मदद करे.
कुलपति ने कहा कि सेमिनार का विषय बहुत प्रासंगिक है। एलबीएसएम कॉलेज की यह पहल सराहनीय है. आज गांव, शहर, राज्य, देश और पूरी दुनिया का एआई के बिना गुज़ारा नहीं है। हमने आज के पहले कभी नहीं सोचा था कि कोई मशीन निर्णय ले सकता है, रिस्पांस कर सकता है. मौके पर कॉलेज की ओर से प्रकाशित सुवेनियर और उसमें प्रकाशित आर्टिकल का उन्होंने काफी सराहना की.
कार्यक्रम का उदघाटन अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर किया. एलबीएसएम कॉलेज के प्राचार्य डॉ प्रो अशोक कुमार झा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि समय परिवर्तन के साथ तकनीकी में परिवर्तन होता है और पुनः जीवन प्रणाली में परिवर्तन आता है. परिवर्तन के साथ तादात्म्य बनाना जरूरी है. आज हम भविष्य में हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले कारक एआई पर चर्चा कर रहे हैं, इस प्रकार भविष्य चर्चा कर रहे हैं. भविष्य में रोजगार सृजन में कृत्रिम बुद्धिमता की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रहेगी. उन्होंने संसाधन प्रबंधन व खोज, उनके संरक्षण, डाटा विश्लेषण में कृत्रिम बुद्धिमता के उपयोग की बात कही.
सेमिनार का बीज वक्तव्य देते हुए एआई विशेषज्ञ रोहित आनंद ने कि कृत्रिम बुद्धिमता एक स्मार्ट तकनीक है जिस पर कई शोध जारी हैं. यद्यपि इसका उपयोग काफी बढ़ा है लेकिन अगले दो से तीन वर्षाें में इसमें कई तरह के परिवर्तन होने की संभावना है. वर्तमान में इसका सर्वाधिक प्रयोग नौकरियों में तेजी से कार्य संपादन में हो रहा है. इसी तरह शोध में, फाइलों को खोजने में, इसके उपयोग बढ़ रहे हैं. यह एक मल्टीस्किल्ड तकनीक है जो हमारे बौद्धिक क्षमता और व्यवहार की कॉपी करता है. भारत में लगभग सभी संस्थानों में इसके उपयोग में तेजी से वृद्धि हो रही है
सेमिनार के विषय के बारे में बताते हुए टूकॉन रिसर्च एंड डेवलपमेंट के डायरेक्टर केतन मिश्रा ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमता पर बहुत सारे शोध हो रहे हैं. कृत्रिम बुद्धिमता का कनसर्न काफी विस्तृत है. लेकिन इसके आधारभूत ज्ञान की जानकारी सभी को होनी चाहिए. यद्यपि इस पर विश्वस्तरीय संस्थान शोध कार्य कर रहे हैं जिसका सर्वाधिक लाभ और अध्ययनरत अगली पीढ़ी के विद्याार्थियों को होगा. ऐसे विद्यार्थी अल्फा-लेवल पार कर जाएंगे जिससे शिक्षक-विद्यार्थी में तालमेल बनाना कठिन होगा. इसलिए एक प्रैक्टिकल फिनिशिंग होनी चाहिए. विद्याार्थियों के साथ शिक्षक को भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. इसके अलावा कृत्रिम बुद्धिमता की जानकारी ग्रामीणों को भी उपलब्ध करानी चाहिए क्योंकि भारत की अधिकतर जनसंख्या गांवों में रहती है. इस पर बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी काम कर रही है. इसलिए व्यावहारिक जमीनी कार्यों पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
कृत्रिम बुद्धिमत्ता से नये विषयों का अध्ययन काफी सरल हो जाता है: डॉ दीपंजय श्रीवास्तव
इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के सचिव डॉ दीपंजय श्रीवास्तव ने बताया कि उच्च शिक्षा पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता ( एआई) उच्च शिक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तन ला चुका है. “कृत्रिम बुद्धिमत्ता” के माध्यम से नये विषयों एवं चीजों का अध्ययन काफी सरल हो जाता है. इसमें परियोजना, अनुसंधान, लर्निंग, डीप लर्निंग, विभिन्न भाषाओं का संरक्षण, नयी-नयी तकनीकों के उपयोग, आनलाईन क्लास, भाषा परिवर्तन की सुविधाएं उपलब्ध हैं. उच्च शिक्षा के महत्व को बढ़ाने में आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस की वैश्विक स्तर पर मांग बहुत बढ़ गया है लेकिन इसके समक्ष महत्वपूर्ण चुनौतियां भी हैं जैसे डीप फैंक, नैतिक शिक्षा का अभाव, मनुष्य के बीच संवेदना का अभाव आदि. इससे उच्च शिक्षा में सही शिक्षण प्रणाली धूमिल हो रहा है, लिखने और सोचने की क्षमता कम हो रही है. जिसके कारण विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के भावनात्मक एवं रचनात्मकता की कमी महसूस किया जा रहा है.
उद्घाटन सत्र में ही सेमिनार की स्मारिका का विमोचन हुआ
उद्घाटन सत्र में मंच पर सबाब आलम और अपूर्व साहा भी मौजूद थे. इस अवसर पर को-आपरेटिव कॉलेज के प्राचार्य डॉ अमर सिंह, एबीएम कालेज के प्राचार्य प्रो विजय कुमार पीयूष, घाटशिला कालेज के प्राचार्य आरके चौधरी, शिक्षक संघ के अध्यक्ष इंदल पासवान, डॉ अशोक रवाणी, विनोद शर्मा भी मौजूद थे. उद्घाटन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन सेमिनार के समन्वयक डॉ विजय प्रकाश ने किया. संचालन आईएक्यूएसी की को-आर्डिनेटर और अंग्रेजी विभाग की एचओडी डॉ मौसमी पॉल ने किया.
इन देशों के शामिल हुए हैं शोधार्थी
सेमिनार में तीन देशों- जर्मनी, यूएसए और नेपाल और झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश समेत विभिन्न राज्यों के विद्वान और शोधार्थी भाग ले रहे हैं.उद्घाटन सत्र के बाद चार टेक्निकल सत्रों में लगभग पचहत्तर शोध आलेख पढ़े गए. लगभग तीन सौ शोधार्थी और विद्वान इस सेमिनार में हिस्सा ले रहे हैं. 12 अप्रैल को विभिन्न तकनीकी सत्रों के साथ सेमिनार का समापन होगा.