– बोधगया से लौट कर वरिष्ठ पत्रकार, समाजसेवी अन्नी अमृता की कलम से
बुद्ध के देश में: पार्ट – 2
अन्नी अमृता. जमशेदपुर.
जब हम किसी भी धार्मिक या पर्यटक स्थल पर जाते हैं तब वहां काफी संख्या में गाइड नजर आते हैं. कई लोग गाइड रखने को पैसे की बर्बादी मानते हैं. मगर कई लोग गाइड की अहमियत समझते हैं. मैं उन्हीं लोगों में से हूं. चाहे कहीं भी जाऊं गाइड जरुर हायर करती हूं. इससे न सिर्फ स्थानीय रोजगार में अपना ‘कंट्रीब्यूशन’ देने का मौका मिलता है बल्कि ज्ञानवर्द्धन भी होता है. काफी सूचनाएं मिलती हैं.
हां, तो पिछले अंक में मैं अपनी मित्र के साथ थाई रेस्टोरेंट में नाश्ता करके महाबोधि मंदिर की तरफ पैदल निकल पड़ी थी. हमलोग पैदल बढ़ते जा रहे थे. रास्ते के दोनों तरफ की आकर्षक दुकानों को निहारते और आस पास के लोगों को देखते हम आगे बढ़ते जा रहे थे. बोधगया की सड़कों पर चलते हुए ऐसा लग रहा था, मानो हम दक्षिण पूर्व के किसी देश में आ गए हों. चारों तरफ उन देशों के पर्यटक और बौद्ध धर्मावलंबी यहां नजर आ रहे थे. जब हम महाबोधि मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचे तो नियम के अनुसार अपने मोबाइल जमा किए और अपने बैग चेक करवाए. उसके ठीक पहले हमने एक नौजवान गाइड कुंदन को हायर किया. उसने जो पैसे बताए उसे हमने कुछ ज्यादा कहते हुए कुछ कम करने का निवेदन किया और कहा कि पत्रकारों को कुछ रियायत दे देना चाहिए. कुंदन की स्पष्टवादिता गजब की थी. उसने सीधे सीधे बताया कि कैसे पैसे कम करने पर उसका नुकसान होगा और पैसे की क्या अहमियत है, खासकर जब वह अपना परिवार इतनी कम उम्र में संभाल रहा हो. खैर, जल्द ही एक खास राशि पर तय हो गया. कुंदन के साथ हमलोग जब महाबोधि मंदिर के अंदर प्रवेश किए तब वहां का अलौकिक नज़ारा हमें मंत्रमुग्ध कर गया. एक अद्भुत शांति महसूस हुई. कुंदन के साथ सबसे अच्छी बात यह लगी कि वह रटी रटाई जानकारियों को जल्दबाजी में सुनाकर इतिश्री करने की जगह काफी तन्मयता से भगवान बुद्ध से जुड़ी हर चीज की जानकारी देता रहा. वह हमलोगों को मंदिर के हर हिस्से की तरफ लेकर गया.
हमलोग अलग अलग जगहों पर बैठकर पांच पांच मिनट ध्यान किए. उसने पूरा इंतजार किया जब तक हमलोग खामोश होकर बुद्ध की उपस्थिति को अपनी अंतरात्मा से महसूस करते रहे. बुद्ध के उपदेशों और जीवन की कहानी के विषय में बताने के साथ ही कुंदन ने अपने जीवन, उस जीवन की जिम्मेदारी और पैसे की अहमियत को जिस साफगोई से बताया, हम प्रभावित हो गए. भगवान बुद्ध को 528 ईसा पूर्व जिस बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था उस वृक्ष के नीचे की ऊर्जा को हमने आत्मसात करने की कोशिश की. आस-पास टच किया, सिर झुकाया, कुछ देर बैठे और बुद्ध व जीवन पर कुंदन के साथ चर्चा की. यह अविस्मरणीय पल था. आज की पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता गाइड ‘कुंदन’ अपनी साफगोई से जीवन का दर्शन समझा गया. आज की पीढ़ी आदर्शवाद पर बात नहीं करती. वह व्यवहारिकता के तल पर चर्चा करती है. वह पीढ़ी जिम्मेदारी भी उठाती है, अध्यात्म पर भी चर्चा करती है व पैसे कमाने की जरुरत पर भी साफगोई से बोलती है.
आस-पास और भी कुछ लोग थे जिन्होंने गाइड रखा था, मगर वे गाइड से ज्यादा चर्चा नहीं कर रहे थे. वे जल्दबाजी में थे. उन्हें भगवान बुद्ध की मूर्ति के दर्शन करके कहीं और भागना था. ऐसे में गाइड क्या करे. उसके उलट गाइड कुंदन लगातार हमलोगों को तरह तरह की जानकारियां दे रहा था. इससे न सिर्फ हमलोग खुश थे अपितु कुंदन को भी हमलोगों के साथ विचार विमर्श करना, थोड़ा ठहरकर और जानकारी साझा करना अच्छा लग रहा था. कुंदन समझ गया था कि हमलोग खानापूर्ति करने नहीं आए, बल्कि वास्तव में भगवान बुद्ध की शरण में आए हैं. उस दिन महाबोधि मंदिर में कुछ पल के लिए अपेक्षाकृत भीड़ ज्यादा आ गई थी, मगर वह भीड़ खानापूर्ति करके चली गई. हम पूरा समय दे रहे थे. कुंदन ने हमें कुछ विदेशी बौद्ध धर्मावलंबियों से मिलाया जो वहां साल में तीन चार महीने के लिए आते हैं और साधना व ध्यान करते हैं. उनमें स्त्री और पुरुष दोनों थे. वे सभी अविवाहित थे. उन्होंने बताया कि वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं. वहां बताया गया कि वे लोग बौद्ध भिक्षु हैं. महिला को भिक्षुणी बताया गया. महिलाओं के भी बाल पूरी तरह से कटे हुए थे.एक महिला भिक्षुणी ने मजाक में हमसे भी बाल कटवाने को कहा जिस पर प्रतिक्रियास्वरूप हमने विनम्रतापूर्वक इंकार कर दिया. नेपाल और भूटान के बौद्ध भिक्षु आराम से हिन्दी में बात कर रहे थे. अन्य देशों के भी कुछ भिक्षु टूटी फूटी हिंदी में हमसे बात कर रहे थे जो बहुत आनंददायक था. वे आपस में अपनी भाषाओं में बात कर रहे थे. मैंने किसी विदेशी को वहां अंग्रेजी बोलते नहीं देखा. अपनी मातृभाषा और भारतीय भाषा हिन्दी के प्रति उनका अगाध प्रेम दिखा.
बुद्ध के देश में: अलौकिक विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर और अद्भुत गाइड कुंदन
विश्व धरोहर है महाबोधि मंदिर
महाबोधि मंदिर के मुख्य प्रांगण के अंदर भगवान बुद्ध की सोने की मूर्ति एक अलग ही दुनिया में ले जाती है.देखकर लगता है मानो भगवान बुद्ध स्वयं प्रकट हों.किताबों में तो सबने इतिहास पढ़ा है, मगर महाबोधि मंदिर के प्रांगण में गाइड कुंदन के मुँह से महाबोधि मंदिर के निर्माण की कहानी सुनना एक अलग ही अनुभव दे गया. भगवान बुद्ध को यहीं 528 ईसा पूर्व में ज्ञान प्राप्त हुआ और कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में महाबोधि मंदिर का निर्माण करवाया. आगे चलकर इस मंदिर का विस्तार और पुनर्निर्माण हुआ. 52मीटर की ऊंचाई वाले महाबोधि मंदिर के भीतर भगवान बुद्ध की सोने की मूर्ति है, जहां भगवान बुद्ध भूमिस्पर्श मुद्रा में हैं. महाबोधि परिसर में एक तालाब (मुचलिंद सरोवर) है जिसके बीचोबीच भगवान बुद्ध की मूर्ति मुचलिंग नाग के साथ है. कहा जाता है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने यहां समय बिताया था. हालांकि वास्तविक सरोवर एक किलोमीटर दूर है और महाबोधि परिसर में सांकेतिक रुप से निर्मित कराया गया है. इसके सौंदर्यीकरण में म्यांमार देश की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
इस तरह महत्वपूर्ण जानकारियों को लिए महाबोधि मंदिर में घटों बिताकर मन में अपार शांति का अनुभव लेकर हम वहां से निकले. आप भी अगर सुकुन के लिए बोधगया महाबोधि मंदिर आएं तो गाइड कुंदन (मोबाइल-9162760354)) से संपर्क करें..फीलगुड होगा..
—जारी–
नोट : यह लेख पूरी तरह से लेखक के यात्रा अनुभव और उनके निजी विचारों पर आधारित है.