- एलबीएसएम के स्थापना दिवस पर याद किये गए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री एवं संस्थापक सदस्य
जमशेदपुर.
लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज के स्थापना दिवस के अवसर पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को याद किया गया. इस मौके पर कॉलेज के संस्थापक डॉ. एपी वर्मा, सनातन मांझी और पद्मश्री डॉ. दिगंबर हांसदा के योगदान की भी चर्चा की गयी.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कॉलेज के प्राचार्य डॉ बी.एन प्रसाद ने कहा कि कॉलेज की स्थापना करने वाले महान विभूतियों के समक्ष हम नतमस्तक हैं. यह कॉलेज लाल बहादुर शास्त्री की स्मृति में बनाया गया, जो एक सच्चे गांधीवादी थे. संयोग है कि आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और शास्त्री जी- दोनों का जन्म दिन है. उनका जैसा सपना था, जिसके लिए उन्होंने संघर्ष किया, हमें व्यवहार में वैसी सामाजिक-धार्मिक और आर्थिक समानता लानी चाहिए. स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को जीवन का उद्देश्य बनाना चाहिए.
मैथिली के विभागाध्यक्ष और पूर्व प्राचार्य डॉ अशोक कुमार झा ने कहा कि एलबीएसएम कॉलेज डॉ एपी वर्मा की सोच, सनातन मांझी की राजनैतिक हैसियत और दिगंबर हांसदा के समर्पण का परिणाम है. इस क्षेत्र को इस कॉलेज ने बहुत कुछ दिया है. इस कॉलेज से पढ़कर छात्र अच्छे राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी बने हैं. अभी भी औसतन हर साल यहां से साठ-सत्तर विद्यार्थी सरकारी सेवाओं में जा रहे हैं.
इसके पूर्व दीप प्रज्ज्वलन तथा बिरसा मुंडा, महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, एपी वर्मा, सनातन मांझी और दिगंबर हांसदा के तस्वीरों पर माल्यार्पण से आयोजन की शुरुआत हुई. स्वागत वक्तव्य भौतिकी विभाग की अध्यक्ष डॉ सुष्मिता धारा ने दिया. इसके बाद डॉ एपी वर्मा के पुत्र सौरभ कुमार वर्मा और डॉ. दिगंबर हांसदा के पुत्र पूरन हांसदा को सम्मानित किया गया.
सौरभ कुमार वर्मा ने कहा कि शास्त्री जी एक दृढ़ निश्चय वाले व्यक्ति थे. एक गरीब परिवार में उनका जन्म हुआ था, पर उसके बावजूद गरीबी को उन्होंने समस्या नहीं बनने दिया. इसलिए उन्हीं के नाम पर इस कॉलेज का नाम रखा गया. इसका शिलान्यास उनकी पत्नी ललिता शास्त्री जी के हाथों हुआ था. सौरभ कुमार वर्मा ने पुरानी तस्वीरों के माध्यम से एलबीएसएम के निर्माण में डॉ एपी वर्मा की भूमिका और कॉलेज के विकास के इतिहास को प्रस्तुत किया.
पद्मश्री डॉ दिगंबर हांसदा के पुत्र पूरन हांसदा ने कहा कि डॉ एपी वर्मा और उनके पिता के बीच कॉलेज को लेकर निरंतर विचार-विमर्श होता रहता था. इस कॉलेज के विकास में ग्रामीणों की बहुत बड़ी भूमिका थी.
गांधी जी की विरासत पर बोलते हुए दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ दीपंजय श्रीवास्तव ने कहा कि आज जब नैतिकता और मनुष्यता की कमी होती जा रही है, तब गांधी जी के अस्तेय, ब्रहचर्य, अश्पृश्यता विरोध, अपरिग्रह, सर्व धर्म सम्भाव, अभय होने और सत्य के प्रति निष्ठा की वैचारिक विरासत हमारे लिए समाज को बेहतर बनाने में सहयोगी हो सकती है.
लाल बहादुर शास्त्री के जीवन पर बोलते हुए राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ विनय कुमार गुप्ता ने कहा कि शास्त्री जी बहुत कम उम्र मेें गांधी जी के नेतृत्व में आजादी के आंदोलन से जुड़ गए थे. वे ऊपर से छोटे कद के और कोमल थे, पर भीतर से बहुत सुदृढ़ थे. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे सात साल तक जेल में रहे. वे ऐेसे कर्मठ और ईमानदार प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने देश के लिए सर्वस्व अर्पित कर दिय. 1965 में उन्होंने पाकिस्तान को पराजित किया था. उन्होंने ही जय जवान जय किसान का नारा देकर सैनिकों में जोश और किसानों में आत्मनिर्भरता की प्रेरणा दी.
‘वर्तमान समय में महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री की प्रासंगिकता’ विषय पर बोलते हुए हिन्दी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सुधीर कुमार ने कहा कि घनघोर आत्मप्रचार, आत्मश्लाघा, अभूतपूर्व सत्तालोलुपता, उपभोक्तावादी इच्छाओं से पैदा अशांति, लालच, उन्माद और संवेदनहीनता के इस दौर मेें गांधी जी और शास्त्री जी का सादगी, त्याग और ईमानदारी से भरा जीवन, उनका कर्म और विचार बेहद प्रासंगिक हैं. उनके विचार और कार्य प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और पर्यावरण के लिए विनाशकारी अपूर्व मुनाफे वाले विकास मॉडल के विरुद्ध जनहितकारी वैकल्पिक विकास मॉडल के निर्माण की दृष्टि प्रासंगिक है. उन्होंने राष्ट्र को उसकी अपनी शक्ति के बल पर खड़ा करके दिखाया. वे विविधता में एकता की बात करते थे, एकरूपता की नहीं. क्योंकि एकरूपता जनतंत्रविरोधी अवधारणा है. उन्होंने कहा कि धार्मिक कट्टरता, नफरत और अविश्वास के इस समय में गांधी जी का सर्व धर्म सम्भाव और शास्त्री जी का धर्म से राजनीति और राज्य को अलग रखने की अवधारणा बहुत कारगर है. आज भी हमें ऐसे नेताओं की जरूरत है जो जनता के प्रति जवाबदेह हो, आत्मालोचना करता हो. रेलमंत्री शास्त्री जी की तरह रेल दुर्घटना के वक्त अपनी जवाबदेही कबूल करते हुए इस्तीफा देने में संकोच न करे. आज भी हमें ऐसे नेताओं की जरूरत है, जो दिन रात सत्ता के आकर्षण के पीछे न भागे. देशी-विदेशी विचारकों और साहित्यकारों की पुस्तकों का अध्ययन करके अपने विचार बनाए. डॉ सुधीर कुमार ने कहा कि गांधी और शास्त्री जी- दोनों सत्य और अहिंसा के साथ-साथ गरीब और कमजोर जन प्रति गहरे तौर पर संवेदनशील थे. गांधी बहुमत के कानून की जगह विवेक को प्राथमिकता देते हैं. वे स्त्रियों और दलितों के उन्नति के पक्षधर हैं. पोस्ट ट्रुथ यानी झूठ के प्रचार के मौजूदा समय में गांधी जी का ‘माई एक्सपीरियंस विद ट्रुथ’ की बहुत अधिक प्रासंगिकता है.
आयोजन का संचालन इतिहास की विभागाध्यक्ष डॉ स्वीकृति ने किया. धन्यवाद ज्ञापन कॉमर्स के विभागाध्यक्ष डॉ विजय प्रकाश ने किया. राष्ट्रगान के साथ आयोजन संपन्न हुआ.
इस मौके पर डॉ. विनोद कुमार, डॉ. डीके मित्रा, प्रो. अरविंद पंडित, प्रो. रितु, जया कच्छप, प्रो. संतोष राम, डॉ. प्रशांत, प्रमिला किस्कू, डॉ. शबनम परवीन, प्रो मोहन साहू,सलोनी रंजने, शिप्रा बोयपाई, जस्मी सोरेन, बाबूराम सोरेन, संजीव मुर्मू, ममता मिश्रा, ज्योति पर्व, पुनीता मिश्रा, रामप्रवेश, हरिहर टुडू, गोपीनाथ, सुस्मिता रॉय के साथ भारी तादाद में एनसीसी के छात्र मौजूद थे.