- स्वतंत्रता सेनानियों के तीन पीढ़ियों की कहानी बयान करती है पुस्तक “जलती रहे मशाल”
- संस्मरणों से जाने क्रांति की सोच रखने वाले नायकों का जीवन संघर्ष
- भोजपुरी भवन, गोलमुरी में सिंहभूम जिला भोजपुरी साहित्य परिषद, जमशेदपुर का आयोजन
जमशेदपुर.
देशभक्ति गीतों की धुन जब भी हमारे कानों में पहुंचती है, तब अनायास ही हम महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार भगत सिंह जैसे आजादी के महानायकों को याद करते है, हम उनके देश के प्रति समर्पण और बलिदान को कोटि कोटि नमन करते है, जिसकी बदौलत हम आजाद भारत में सांस ले रहे है. आजादी की लड़ाई में महानायकों के अलावा अनगिनत देशवासियों ने भी स्वतंत्रता की लड़ाई में अपनी आहुतियां दी थी. अगर आप आम देशवासियों, स्वतंत्रता सेनानियों की नजर से स्वतंत्रता की लड़ाई को महसूस करना चाहते है तो आपको ” जलती रहे मशाल” जरूर पढ़नी चाहिए.
स्वतंत्र भारत में शोषितों और पीड़ितों की आवाज बन अनगिनत प्रयास करने वाले जनवादी कवि अरविंद विद्रोही के बहुप्रतीक्षित पुस्तक ” जलती रहे मशाल” का लोकार्पण गोलमुरी स्थित भोजपुरी भवन में सिंहभूम जिला भोजपुरी साहित्य परिषद, जमशेदपुर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पुस्तक का लोकार्पण मुख्य अतिथिएवं अर्का जैन यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर डॉ अंगद तिवारी, विशिष्ट अतिथि डॉ अशोक अविचल, साहित्यकार दिनेश्वर प्रसाद सिंह दिनेश, के द्वारा किया गया. अतिथियों ने अरविंद विद्रोही की पुस्तक “जलती रहे मशाल” से जुड़े कई कहानियां व किस्से विस्तार से बताते हुए कार्यक्रम को बेहद रोचक बना दिया. विशिष्ट अतिथि डॉ अशोक अविचल ने कहा की हम भारतीय अपने पूर्वजों को नहीं भूलते और हमारे पूर्वजों का जिन हमारी पीढ़ियों को निर्देशित करता हैं. साहित्यकार अरविन्द विद्रोही के साथ यह बात बखूबी लागू होती हैं . देश की आजादी की लड़ाई में उनके तीन पीढ़ियों ने योगदान किया और आज भी उनका परिवार समाज के लिए समर्पित हैं.
स्वतंत्रता सेनानी पारिवार की कहानी है ये पुस्तक : डॉ अंगद
मुख्या अतिथि डॉ अंगद तिवारी ने कहा कि जलती रहे मशाल एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार कि कहानी हैं और परिवार के संघर्षों का दस्तावेज हैं. इस पुस्तक को पढ़ने से पता चलता हैं कि देश कि स्वंत्रता कि लड़ाई में शामिल सेनानियों और उनके परिवार ने देश के लिए कितने कष्ट उठाये. बाबा भासी राय का परिवार आज भी समाज में कैसे सक्रिय और पहचान बनाये हुए है और कैसे संघर्ष करते हुए आगे बढ़ रहा हैं.
जलती रहे मशाल में इसका जीवंत बर्णन है. इस पुस्तक के बड़ी मेहनत से लेखक अरविन्द विद्रोही ने लिखा हैं. इससे उनके परिवार के साथ समाज को भी दिशा मिलेगी. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिनेश्वर प्रसाद सिंह दिनेश ने अरविन्द विद्रोही और उनके पूर्वजों के योगदान कि चर्चा की. संध्या सिन्हा ने लेखक अरविन्द विद्रोही के जीवन पर प्रकाश डाला. स्वागत भाषण अरविन्द विद्रोही के पुत्र और पत्रकार सत्येंद्र कुमार ने दिया.
कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन साहित्यकार उदय प्रताप हयात ने किया, वही “जलती रहे मशाल” के लोकार्पण के मौके पर वरिष्ठ पत्रकार कवि कुमार कौशल, चमकता आइना के संपादक जयप्रकाश राय शहर के अनगिनत साहित्यकार व गणमान्य लोग मौजूद थे.
पारिवार की तीन पीढ़ी जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में निभाई अपनी भूमिका
81 वर्षीय अरविंद विद्रोही जी अपने परिवार की चौथी पीढ़ी है, जिन्होंने सर्वहारा व वंचित वर्ग के लिए लगातार लड़ाई लड़ी. अरविंद विद्रोही के पिता स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ राय शर्मा, दादा दुर्गा प्रसाद राय व परदादा भाषी राय तीन पीढ़ियों ने आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया. बिहार के गोपालगंज जिले के हथुआ प्रखंड कार्यालय के सामने स्थित स्वतंत्रता सेनानियों के शिलालेख पर भी स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ राय शर्मा जी का नाम अंकित है. पुस्तक “जलती रहे मशाल” में 62 संस्मरण आलेख शामिल है, जिनके माध्यम से हम शर्मा परिवार के सैकड़ों सालों के पारिवारिक इतिहास को पढ़ते हुए आजादी की कहानियों व आजादी के बाद के भारत को महसूस कर सकते है. पुस्तक के आलेख बड़ी सहजता से क्रांति की सोच रखनेवाले नायकों के विचारधारा से हमें रूबरू करवाते है.
पत्रकार स्व. ब्रह्मदेव सिंह शर्मा को समर्पित है पुस्तक
अरविंद विद्रोही ने पुस्तक ” जलती रहे मशाल” को दक्षिण बिहार के सुप्रसिद्ध पत्रकार व हिंदी दैनिक चमकता आईना के संस्थापक स्वर्गीय ब्रह्मदेव सिंह शर्मा को समर्पित किया है. अरविंद बताते है कि ब्रह्मदेव शर्मा ने उन्हे एक दिन कहा था कि तीन पुस्तों से आपके परिवार ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष किया है. वह संघर्ष इतिहास के पन्नों में अंकित होना चाहिए. किताब के माध्यम से संघर्ष की कहानियों को अंकित किया गया है, ताकि आगे भी इससे प्रेरणा मिलती रहे. संस्मरणों को याद करते हुए अरविंद विद्रोही भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के साथ किए गए पत्राचार व राजेंद्र बाबू के द्वारा उनकी पढ़ाई में सहायता करने में किस्से को बड़े ही गर्व से बयान करते है.
विद्रोही जी की प्रमुख पुस्तकें
अरविंद विद्रोही सिंहभूम जिला भोजपुरी साहित्य के अध्यक्ष भी है, वही उन्होंने राजनीतिक लाश, शिलालेख की टीस, नाक के नीचे नाक, दांत के नीचे दांत, लकीर जैसी अनगिनत कृतियों के माध्यम से साहित्य की समृद्ध विरासत समाज को सौंपी है.