अजय मुस्कान.
चलो दिवाली मनाते हैं…..
चलो प्रिय ! दिवाली हम मानते हैं
आशाओं के दीप कुछ जलाते हैं
पसरा बहुत अँधेरा अपने. अंदर
मन देहरी पे , दीप इक जलाते हैं
आशाओं के दीप कुछ जलाते हैं
चलो प्रिय! दिवाली हम मानते हैं..!!
कुछ खिड़कियाँ टूट गई अरमानों की
अब बातें नहीं करनी उन तुफानों की
बीत गया वो लम्हा, वो इक लम्हा था
चलो! कील उम्मीद की फिर लगाते हैं
आशाओं के दीप कुछ जलाते हैं
चलो प्रिय! दिवाली हम मानते हैं..!!
मैं झालर, तुम लड़ियाँ जीवन की
गीत ख़ुशियाँ सब तुम जीवन की
तुमसे ही प्रीत, तुमसे ही लड़ाई, चल
जीवन जटिल, सुगम कुछ बनाते हैं
आशाओं के दीप कुछ जलाते हैं
चलो प्रिय! दिवाली हम मानते हैं..!!
दीप से दीप जले , कलुष मिटे सारे
घर – घर हो उजियारा तम हटे प्यारे
हर्षित दुनिया, शुभ हो! यह दिवाली
छोड़ सब ‘मंगल दीप’ हम जलाते हैं
आशाओं के दीप कुछ जलाते हैं
चलो प्रिय! दिवाली हम मानते हैं..!!
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