मनोज किशोर.
यादें
बीते दिनों को याद करके मैं बहुत रोया जिस आंगन में पलकर बड़ा हुआ,
उस आंगन को याद करके मैं बहुत रोया. जब बंटने लगे आंगन के हिस्से……
उस पल को याद करके मैं बहुत रोया. छोड़ना पड़ा जब उस घर-आंगन,
बरगद की छांव,पीपल की ठंडी हवा, बारिश में भीगी मिट्टी की सोंधी महक, दोस्तों की महफ़िल अपनों का साथ,
उसे याद करके मैं बहुत रोया.
नहीं मिलता अब मां का दुलार,
बाबूजी की फटकार,भैया का प्यार
कहां चले गए ये सब,क्यों हो गए ये
सभी मौन?????
खुद को अकेला पाकर मैं बहुत रोया.
सोचा था जिंदगी गुजार दूंगा
सभी के संग पर एक-एक कर
कुछ सदा के लिए बिछुड़ गए,
जो रह गए वे भी दूर बहुत दूर हो गए,
उन्हें याद करके मैं बहुत रोया.
छटपटाता है मन,हो जाता हूँ बेचैन
जी चाहता है लौटने को
उस घर-आंगन की मिट्टी में जहां मैंने संयुक्त परिवार संग बचपन गुजारी है.
किंतु यह पल अब कभी ना लौट सकेगा यह सोचकर मैं बहुत रोया .
एक दिन बादल भी मेरे दुख को देखकर बरस पड़ा,उस दिन वह भी खूब रोया.
सच कहूं उसके संग-संग
उस दिन मैं भी बहुत रोया…
शायद फूट-फूट कर रोया!!!
बीते दिनों को याद करके
मैं बहुत रोया………..
मनोज किशोर
एम.ए. (इतिहास)