- शिक्षक, विद्यार्थी और अभिभावक जरूर पढ़े यह विशेष रिपोर्ट.
डॉ पुरषोत्तम कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर (सीएसआईआर).
“शिक्षक बुनियादी रूप से इस जगत में सबसे बड़ा विद्रोही व्यक्ति होना चाहिए. तब वह पीढ़ियों को आगे ले जाएगा, लेकिन शिक्षक सबसे बड़ा दकियानूस है, सबसे बड़ा ट्रेडीशनलिस्ट वही है, वही दोहराये जाता है पुराने कचरे को. क्रांति शिक्षक में होती नहीं है. आपने सुना है कि कोई शिक्षक क्रांतिपूर्ण हो. शिक्षक सबसे ज्यादा दकियानूस, सबसे ज्यादा आर्थोडॉक्स है, इसलिए शिक्षक सबसे खतरनाक है. समाज उससे हित नहीं पाता है, अहित पाता है. शिक्षक होना चाहिए विद्रोही-कौन-सा विद्रोही? मकान में आग लगा दे या कुछ और कर दे या जाकर ट्रेन उलट दे या बसों में आग लगा दे, मैं उनको नहीं कह रहा हूं, गलती से वैसा न समझा जाए. मैं कह रहा हूं कि हमारी जो वैल्यूज हैं उनके बाबत विद्रोह का रुख, विचार का रुख होना चाहिए कि यह मामला क्या है.
जब हम एक बच्चे को कहते हैं कि तुम गधे हो, तुम नासमझ हो, तुम बुद्धिहीन हो, देखो उस दूसरे को, वह कितना आगे है, तब यह विचारणीय है कि यह कितने दूर तक ठीक है और सच है! क्या दुनिया में दो आदमी एक जैसे हो सकते हैं? क्या यह संभव है कि जिसको हम गधा कह रहे हैं वह वैसा हो जायेगा जैसा कि आगे खड़ा है. क्या यह आज तक संभव है? हर आदमी जैसा है, अपने जैसा है, दूसरे आदमी से कंपेरीजन का कोई सवाल ही नहीं. किसी दूसरे आदमी से उसका कोई कंपेरीजन नहीं, उसकी कोई तुलना नहीं.
एक छोटा कंकड़ है, वह छोटा कंकड़ है, एक बड़ा कंकड़ है, वह बड़ा कंकड़ है, एक छोटा पौधा है, वह छोटा पौधा है, एक बड़ा पौधा है, वह बड़ा पौधा है! एक घास का फूल है, वह घास का फूल है, एक गुलाब का फूल है, वह गुलाब का फूल है! प्रकृति का जहां तक संबंध है, घास के फूल पर प्रकृति नाराज नहीं है और गुलाब के फूल पर प्रसन्न नहीं है. घास के फूल को भी प्राण देती है उतनी खुशी से जितनी गुलाब के फूल को देती है और मनुष्य को हटा दें तो घास के फूल और गुलाब के फूल में कौन छोटा कौन बड़ा है? कोई छोटा और बड़ा नहीं है! घास का तिनका छोटा है और बड़ा चीड़ का दरख्त काफी ऊंचा है, इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि चीड़ का पेड़ घास से महान है और घास का तिनका छोटा है? अगर ऐसा होता तो परमात्मा कभी का घास के तिनके को समाप्त कर देता और चीड़-चीड़ के दरख्त रह जाते दुनिया में.
यह स्मरण रखा जाए कि इस संबंध में मैं कुछ गहरी बात कहने का विचार रखता हूं. वह यह कि जब तक दुनिया में हम एक आदमी को दूसरे आदमी से कंपेयर करेंगे तब तक हम गलत रास्ते पर चलते रहेंगे. वह गलत रास्ता यह होगा कि हम हर आदमी में दूसरे आदमी जैसा बनने की इच्छा पैदा करते हैं, जबकि कोई आदमी न तो दूसरे जैसा बना है और न बन सकता है.
राम को मरे कितने दिन हो गये, या क्राइस्ट को मरे कितने दिन हो गये, दूसरा क्राइस्ट क्यों नहीं बन पाता और हजारों हजारों क्रिश्चियन कोशिश में तो चौबीस घंटे लगे हैं कि क्राइस्ट बन जायें. हजारों राम बनने की कोशिश में हैं, हजारों जैन, महावीर, बुद्ध बनने की कोशिश में हैं, लेकिन बनते क्यों नहीं एकाध? एकाध दूसरा क्राइस्ट और दूसरा महावीर क्यों नहीं पैदा होता? क्या इससे आंख नहीं खुल सकती हमारी? मैं रामलीला के रामों की बात नहीं कह रहा हूं, जो रामलीला में बनते हैं राम. वैसे तो कई लोग राम बन जाते हैं, कई लोग बुद्ध जैसे कपड़े लपेट लेते हैं और बुद्ध बन जाते हैं. कई लोग महावीर जैसा कपड़ा लपेट लेते हैं या नंगा हो जाते हैं और महावीर बन जाते हैं. मैं उनकी बात नहीं कर रहा। वे सब राम लीलाके राम हैं, उनको छोड़ दें। लेकिन राम कोई दूसरा पैदा होता है?
यह हमें जिंदगी में भी पता चलता है कि ठीक एक आदमी जैसा दूसरा आदमी कोई हो सकता है? एक कंकड़ जैसा दूसरा कंकड़ भी पूरी पृथ्वी पर खोजना कठिन है-यहां हर चीज यूनिक है और हर चीज अद्वितीय है और जब तक हम प्रत्येक की अद्वितीय प्रतिभा को सम्मान नहीं देंगे तब तक दुनिया में प्रतियोगिता रहेगी, प्रतिस्पर्धा रहेगी, तब तक मारकाट रहेगी, तब तक दुनिया में हिंसा रहेगी, तब तक दुनिया में सब बेईमानी के उपाय से आदमी आगे होना चाहेगा, दूसरे जैसा होना चाहेगा. जब हर आदमी दूसरे जैसा होना चाहता है तो क्या होता है? फल यह होता है-अगर एक बगीचे में सब फूलों का दिमाग फिर जाये या बड़े बड़े शिक्षक वहां पहुंच जायें और उनको समझायें कि देखो, चमेली का फूल चंपा जैसा हो जाये, और चंपा का फूल जूही जैसा, क्योंकि देखो जूही कितनी सुंदर है, और सब फूलों में पागलपन आ जाए, और चंपा का फूल जूही जैसा, क्योंकि देखो, जूही कितनी सुंदर है, तो फिर प्रकृति का सारा नियम डामाडोल होने लगता है.
दुनिया में एक बच्चा भी ऐसा खोजना मुश्किल है जिसमें कोई न कोई अद्वितीय प्रतिभा परमात्मा ने न दी हो. शिक्षक की भूमिका छिपी हुई प्रतिभा को पहचानने और निखारने हेतु उत्प्रेरित करना भर है. शिक्षकों को अपने छात्रों के साथ मित्रवत व्यवहार करना ही होगा. मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित कर हृदय का परिवर्तन किया जा सकता है और छात्र में छिपी हुई प्रतिभा को निखारा जा सकता है. किसी छात्र को मैथ में रुचि नहीं हो सकती है, किसी को विज्ञान अच्छा नहीं लग सकता है, किसी को साहित्य में रुचि नहीं हो सकती है- इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि छात्र प्रतिभा हीन है. हो सकता है कि उसके भीतर एक महान संगीतज्ञ या महान खिलाड़ी बनने की संभावना छिपी हो. शिक्षक की भूमिका बहुत बड़ी है. एक शिक्षक में असीम धैर्य, प्रेम, करुणा, आत्मीयता और गहन आत्मबोध होना चाहिए और इसके लिए राष्ट्र की श्रेष्ठतम प्रतिभा को ही यह कार्य सौंपा जाना चाहिए.
शिक्षक होना नौकरी करना और व्यवसाय करने जैसा नहीं है. इस कार्य में राष्ट्र निर्माण हेतु पूरी आत्मा उड़ेलनी पड़ती है. छात्रों की निंदा से काम चलने वाला नहीं है. छात्र की उद्दंडता, संस्कार हीनता अंततः शिक्षक की भूमिका पर एक प्रश्न चिन्ह लगा जाती है?
नोट : यह लेख सीएसआईआर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ पुरुषोत्तम कुमार ने लिखी है.
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