संध्या सिन्हा ‘सूफ़ी’.
गणतंत्र की कविता
लहरा है फिर शान तिरंगा भारत के जयकारों से
गर्वित मन की धरती होती, देशप्रेम के नारों से।।
वो अधीनता की बदरी जो, भारत पर मंडराती थी,
हर वासी का तिरस्कार कर, उसको बहुत रुलाती थी,
कटीं गुलामी की ज़ंजीरें, हिम्मत की तलवारों से
गर्वित मन की धरती होती, देशप्रेम के नारों से।।
आज़ादी का झंडा अपना, तन मन उर्जित करता है,
नागरिकता के भावों से, हृदय पटल सहलाता है,
गणतंत्र की नई रौशनी, सैनिक के ललकारों से,
गर्वित मन की धरती होती, देशप्रेम के नारों से।।
शोख सांवरी, नैन बिजुरिया चंचल हो बतियाती है
खेतों से लौटा है साजन देख उसे इठलातीं है
उपजेंगे कल आस हमारे खेतों और कछारों से।।
गर्वित मन की धरती होती, देशप्रेम के नारों से।।
उद्योगों में काम करें वो, स्नान स्वेद से करते हैं,
स्वावलंबी हो स्वाभिमान से, प्रतिदिन स्वयं सँवरते हैं,
नन्हे का झुनझुना खरीदें, सपने चंदा तारों से,
गर्वित मन की धरती होती, देशप्रेम के नारों से।।
संध्या सिन्हा ‘सूफ़ी’
प्राध्यापक, हिंदी विभाग
करीम सिटी कॉलेज
जमशेदपुर
मो. 9835345653