- 12 साल पहले 12 अगस्त 2012 को हाथियों के सरंक्षण के लिए घाेषित हुआ था हाथी दिवस
- दलमा में घटे हाथी, गिनती में 2022 में 105 की तुलना में 2023 में 88 हाथी पाये गए
- केनाल, ट्रेंच की खुदाई व आहार उपयोगी पेड़ों की कमी के कारण हाथियों के मूवमेंट में हो रही परेशानी
- हाथियों के अस्वभाविक मौत के मामले में झारखंड देश में दूसरे नंबर पर
Central Desk, Campus Boom.
हाथी का नाम सुनते ही लोगों खासकर बच्चों का मन प्रफुल्लित हो जाता है. जितना विशालकाय यह जानवर है, जो जंगल में रहने के बावजूद मनुष्य के काफी करीबी होता है. यह मनुष्य के संपर्क में तत्काल आ जाता है. महावत संग हाथी पर चढ़ना, घूमना बच्चों को सबसे अधिक पसंद आता है. हाथी से जुड़ी आज हम आप सभी को काफी रोचक और उनकी वर्तमान स्थिति को बताएंगे. आज यानी 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस (World Elephant Day) के तौर पर मनाया जाता है. आइए जानते हैं इससे जुड़ी कहानी, इतिहास और इस दिवस को मनाने का क्या है कारण?
झारखंड के संदर्भ में पहले हम बात करेंगे. झारखंड के सरायकेला क्षेत्र में पड़ने वाले दलमा की पहाड़ी और जंगल में हाथियों के पाए जाने को लेकर ही इसे गज संरक्षण अभयारण्य घोषित किया गया था. एक समय में इस जंगल में 140 से भी ज्यादा हाथियों की संख्या थी. 2022 की गणना के दौरान जहां यह संख्या 105 तक दर्शायी गई, वहीं यह 2023 में घट कर 88 के आसपास रह गया है. वहीं, कर्नाटक में हाथियों की संख्या 2010 में 5,740 से बढ़कर 2012 में 6,072 हो गई थी, 2017 में घटकर 6,049 हो गई. हालांकि, 2023 में हाथियों की संख्या में 346 की वृद्धि हुई है. देश में सबसे अधिक हाथियों की संख्या कर्नाटक में ही है.
दलमा में हाथियों की संख्या के घटना और निचले स्थल व ग्रामीण क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में हाथी मानव के बीच हो रहे टकराव खतरे के संकेत है. एक ओर संरक्षित अभयारण्य में हाथियों की संख्या घट रही है, लेकिन दूसरी और माइग्रेट होकर आने वाले हाथियों का उत्पात हाथियों के लिए अनुकूल माहौल नहीं होने के संकेत है. हाथियों के आहार (वृक्ष-पिपल, बरगद, बांस अन्य) व पीने योग्य पानी की कमी इसका मूल कारण है. जंगल और हाथियों के रास्ते में ट्रेंच और केनाल की हुई खुदाई के कारण हाथी अपने मार्ग से भटक जा रहे हैं और गांव, घर में घूस कर तबाही मचा रहे है. भोजन की तलाश में में राइस मिल में भी घूसते पाए गए हैं. हाथियों के संरक्षण के लिए उनके उचित आहार की व्यवस्था उनके मार्ग में करनी होगी, तभी उन्हें आवासीय क्षेत्र में प्रवेश से रोका जा सकता है. अन्यथा आने वाले समय में स्थिति और भी खराब होगी. इसका नतीजा होगा कि मानव हाथी के बीच टकराव बढ़ेगा और नुकसान दोनों को होगा.
छह साल में मारे गए 17 हाथी
काफी दुख की बा है कि हाथी संरक्षण पर करोड़ों रुपए खर्च करने का दावा करने वाले क्षेत्र में हाथियों की मौत का होना. पूर्वी सिंहभूम समेत पूरे कोल्हान में पिछले छह साल 2018 से लेकर अब तक 17 हाथियों की मौत हो गई है. इसमें सबसे अधिक 9 मौत करंट (बिजली की तार) के संपर्क में आने से हुई. इससे में सबसे दर्दनाक घटना 2023 में पूर्वी सिंहभूम मुसाबनी में घटी थी जहां एक साथ चार हाथियों की मौत बिजली के तार के संपर्क में आने से हो गई थी. इसमें दो मादा एक नर और एक शिशु नर हाथी था. इसी तरह अन्य आठ हाथियों में सात की मौत ट्रेन की चपेट में आने और एक शिशु हाथी के कुएं में गिरने से हो गई थी. इन 17 हाथियों के मौत में 80 प्रतिशत मामले में सीधे तौर पर जिम्मेदारों की अनदेखी और लापरवाही के कारण हुई्. लेकिन जांच के नाम पर महज कागजी कार्रवाई हो गई. रिपोर्ट में क्या पाया गया, क्या कार्रवाई हुई यह विभाग के फाइलों में दब कर रह गया, सिवाए इसके कि बिजली के तार को ऊंचा करने का आदेश.
दलमा में मनाया जाता है हाथी का जन्मदिन
दलमा गज सरंक्षण अभयारण्य में प्रत्येक वर्ष अगस्त में जहां दुनिया भर में हाथी दिवस मनाया जाता है, वहीं दलमा में इसके साथ दोगुनी खुशी के साथ आयोजन किया जाता है. दरअसल 15 वर्ष पूर्व घायल अवस्था में पाई गई हथिनी को नया जीवन मिलने के बाद से प्रत्येक वर्ष 8 अक्टूबर को उसका जन्मदिन मनाया जाता है. केक कटिंग के साथ बच्चों के बीच मिठाई का वितरण किया जाता है. बच्चों को जागरूक भी किया जाता है. घायल अवस्था में पाई हाथी को जब नया जीवन मिला तो उसका नाम रजनी दिया गया. इस वर्ष दलमा में रजनी की 15वीं जन्मदिवस मनाया जायेगा.
12 अगस्त 2012 को शुरू हुआ हाथी दिवस
विश्व हाथी दिवस 12 अगस्त को एक अंतरराष्ट्रीय वार्षिक कार्यक्रम है, जो दुनिया के हाथियों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए समर्पित है. 2011 में कनाडाई फिल्म निर्माताओं पेट्रीसिया सिम्स और कैनज़वेस्ट पिक्चर्स के माइकल क्लार्क और थाईलैंड में हाथी पुनरुत्पादन फाउंडेशन के महासचिव सिवापोर्न दर्दरानंदा द्वारा कल्पना की गई, इसे आधिकारिक तौर पर 12 अगस्त 2012 को पेट्रीसिया सिम्स और हाथी पुनरुत्पादन फाउंडेशन द्वारा स्थापित, समर्थित और लॉन्च किया गया था. उस समय से पेट्रीसिया सिम्स विश्व हाथी दिवस का नेतृत्व, समर्थन और निर्देशन करना जारी रखती हैं, जिसे अब 100 से अधिक वन्यजीव संगठनों और दुनिया भर के देशों में कई व्यक्तियों द्वारा मान्यता प्राप्त और मनाया जाता है.
उद्देश्य
विश्व हाथी दिवस का लक्ष्य अफ्रीकी और एशियाई हाथियों की तत्काल दुर्दशा के बारे में जागरूकता पैदा करना और बंदी और जंगली हाथियों की बेहतर देखभाल और प्रबंधन के लिए ज्ञान और सकारात्मक समाधान साझा करना है. अफ्रीकी हाथियों को आईयूसीएन रेड लिस्ट में खतरे में पड़ी प्रजातियों में “कमजोर” और एशियाई हाथियों को “लुप्तप्राय” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. एक संरक्षणवादी ने कहा है कि अफ्रीकी और एशियाई दोनों हाथी बारह वर्षों के भीतर विलुप्त होने का सामना करते हैं. वर्तमान जनसंख्या अनुमान अफ्रीकी हाथियों के लिए लगभग 400,000 और एशियाई हाथियों के लिए 40,000 है, हालांकि यह तर्क दिया गया है कि ये संख्या बहुत अधिक है.
फैक्ट
दृष्टि आईएएस के पोर्टल में प्रसारित एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (WWF) के अनुसार करीब 100 वर्ष पूर्व तक सिर्फ अफ्रीका में ही 1 करोड़ से ज्यादा हाथी थे. 1979-80 तक अफ्रीका में इनकी संख्या 20 लाख तक रह गई थी. अगले दस वर्षों में, 1990 तक मात्र 6 लाख हाथी अफ्रीका में बचे थे. 1977 से 1990 की छोटी अवधि में ही पूर्वी अफ्रीका क्षेत्र के लगभग 75 प्रतिशत हाथी समाप्त कर दिये गये थे. 1987 के बाद अफ्रीका में इनका अवैध शिकार बेतहाशा बढ़ गया और 1987 से अब तक अफ्रीका सवाना हाथियों की संख्या में 80 प्रतिशत व अफ्रीकी जंगली हाथियों की संख्या में करीब 45 प्रतिशत गिरावट आयी है. सिर्फ 2002 से 2011 के मध्य ही अफ्रीकी हाथी 62 प्रतिशत तक कम हो गये तथा उनके प्राकृतिक आवासीय क्षेत्रों में 30 प्रतिशत की कमी आई. 2016 तक पूरे अफ्रीका में हाथियों की कुल संख्या 4 लाख से कुछ ही अधिक थी. हाल के वर्षों में अफ्रीका में करीब 15000 हाथी प्रति वर्ष हाथीदांत के लिये मारे जा रहे हैं.
एशियाई हाथियों की स्थिति भी अधिक बेहतर नहीं है. 1980 से अब तक इनके प्राकृतिक निवास क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है. 1980 तक एशिया में करीब 93 लाख हाथी थे, जो अब सिर्फ 45 हज़ार से 50 हज़ार तक सीमित रह गये हैं. इनमें से भी लगभग 60 प्रतिशत भारत व नेपाल में हैं, शेष श्रीलंका, थाइलैंड, म्यांमार अन्य देशों में थोड़ी-थोड़ी संख्या में हैं. इंडोनेशिया के सुमात्रा में ये अपना प्राकृतिक आवासीय क्षेत्र 70 प्रतिशत तक खो चुके हैं और IUCN ने वहां इन्हें ‘अत्यधिक संकटापन्न (Critically endangered)’ श्रेणी में शामिल किया है. वर्तमान में भारत में हाथियों की कुल तादाद लगभग 27 हज़ार से 30 हज़ार के बीच है.
हाथियों का पारिस्थितिकीय महत्व
वन्य-जीव पारितंत्र में हाथियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है. पारिस्थितिकी (Ecology) में इन्हें “की-स्टोन प्रजाति या अंब्रेला प्रजाति (Keystone species or Umbrella species)” का दर्जा दिया जाता है, अर्थात अपने पारितंत्र में ये वह प्रजाति हैं जो संख्या में बहुत कम होने के बाद भी पारितंत्र की सेहत पर अति निर्णायक प्रभाव डालती हैं और पारितंत्र के बहुत से प्राणियों का अस्तित्व इन्हीं पर निर्भर करता है. इसी कारण इन्हें “फ्लैगशिप प्रजाति (Flagship species)” भी कहा जाता है, जिनका संरक्षण करना अत्यावश्यक है.