- पार्क इंकैब एक्सटेंशन ऑफिस रोड, बिस्टुपुर में आयोजित हुआ कार्यक्रम
जमशेदपुर.
अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य भारती के प्रदेश अध्यक्ष डॉ.अरुण सज्जन की चौबीसवीं सद्य: प्रकाशित पुस्तक “मगध का पाषाण पुरुष: दशरथ मांझी” कथा- काव्य पर परिचर्चा नवगीत की प्रमुख हस्ताक्षर डॉ.शांति सुमन की अध्यक्षता में आयोजित हुई. परिचर्चा में भाग लेते हुए सिंहभूम हिंदी साहित्य भारती के महामंत्री मनीष सिंह वंदन ने वरिष्ठ साहित्यकार पद्मा मिश्रा द्वारा “मगध के पाषाण पुरुष- दशरथ माँझी (कथा-काव्य) पर लिखी गई.
समीक्षा को प्रस्तुत करते हुए कहा कि अरुण सज्जन जी ने जीस विषय का चयन किया है वह अत्यंत प्रशंसनीय है। डाँ आशा गुप्ता ने उक्त कथा-काव्य की तारीफ़ करते हुए सज्जन जी को बधाई दी. रेनुबाला ने संकलन के लिए शुभकामनाएं देते हुए इस पुस्तक से नई पीढ़ी को जोड़ने पर जोड़ दिया.
वरिष्ठ कवयित्री ज्योत्स्ना अस्थाना ने कविता की मूल संवेदना को परिभाषित करते हुए जयशंकर प्रसाद को उद्धृत किया. सुविख्यात कवि एवं कहानीकार शैलेन्द्र अस्थाना ने अपनी बात रखते हुए दशरथ मांझी को प्रेम का संपूर्ण साधक बताते हुए कहा कि यह संकलन कई अर्थों में साहित्य एवं सामाज दोनों के लिए विशेष स्थान रखेगा. उन्होंने प्रेम और घृणा का उद्गम स्थल एक ही है, को चित्रित करते हुए दशरथ माँझी का पत्नी से प्रेम और गहलौर पर्वत से घृणा दोनों को परिभाषित किया.
डॉ चेतना वर्मा ने काव्य सौंदर्य की चर्चा करते हुए कहा कि डॉ अरुण कुमार सज्जन ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण काम किया है. आज जरुरत है ऐसे-ऐसे पात्रों की तलाश कर उनके जीवन वृत से आमजन विशेषकर युवा पीढ़ी का परिचय कराया जाए.
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉ शान्ति सुमन ने रामायण के पात्रों की विस्तृत व्याख्या करते हुए भरत की कर्मशीलता और दशरथ माँझी का ढृढ़ संकल्प दोनों को एकाकार करते हुए अवतार प्रथा के अन्तर्गत दशरथ माँझी को भरत का अवतार बताया. उन्होंने कहा कि नायकत्व हमेशा से राजा-महाराजाओं, पूँजीपतियों, रसूखदारों की विरासत रही है,,जिससे निकलने की चेष्ठा किसी साहित्यकार ने नहीं की.
दिनकर ने रश्मिरथी और साकेत के माध्यम से एक पहल जरुर की,,लेकिन जिस दिन-दशा में दशरथ माँझी का उदय और अस्त (जन्म-मरण) होता है ,कर्ण या उर्मिला की वह दिन-दशा नहीं होती! डॉ सज्जन ने दशरथ माँझी को नायकत्व देकर इस सदी पर बहुत बड़ा उपकार किया है. डॉ अरुण कुमार सज्जन ने परिचर्चा के दरम्यान अपनी बात रखते हुए कहा कि मैं वजीरगंज थाना (गया) से हूं. दशरथ मांझी की पत्नी फगुनिया मेरे ही गाँव ‘पूरा’ से थी. गहलौर मेरे गाँव से कुछ ही दूरी पर है. मैंने दशरथ माँझी को पहाड़ काटते हुए देखा है. अगर मैं उनपर नहीं लिखता तो मेरी आत्मा मुझे इसके लिए कभी माफ नहीं करती.
कार्यक्रम का संचालन वरुण प्रभात ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन कुमार मुकुल ने दिया. कार्यक्रम को सफल बनाने में डाँ विशाखा एवं अन्य का सहयोग स्मरणीय है.