राकेश कुमार पांडेय.
एक लोटा जल
देवेन्द्र घर का बड़ा लड़का था परिवार चलाने की जिम्मेदारी उसी के कंधे पर थी। घर में बुढ़ी मां मालती जो हमेशा बीमार रहती थी एक छोटा भाई नकुल था जो गांव के सरकारी स्कूल में कक्षा 8 का विद्यार्थी था। परिवार में कुल तीन लोग ही थे। देवेन्द्र के पिता दीनानाथ की मृत्यु 10 साल पहले हो चुकी थी । किशोरावस्था में ही देवेन्द्र के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी जिसे वह बड़ी कठिनाई से निभा रहा था। थोड़े से अपने खेत और इधर उधर कुछ मजदूरी कर घर को चला रहा था। पैसे के आभाव में मां का उचित इलाज नहीं करवा पा रहा था। एक बार उसने कहा भी की मां चलो अपनी ज़मीन गिरवी रख तेरा इलाज शहर के अस्पताल में करवा दें, लेकिन मालती ने मना यह कहते हुए कर दिया कि फिर उसको छुड़ाने के लिए रुपए कहां से लाओगे। वैसे भी दो भाई हो जमीन रहेगा तो कोड़ का कर जीवन यापन कर सकते हो।
देवेन्द्र एक दिन पास के बाजार से काम कर लौट रहा था तो उसे रास्ते में पड़ने वाले मंदिर में पंडित जी की कथा सुनाई दी जिसमें पंडित जी कह रहे थे सभी समस्याओं का हल शिव जी पर एक लोटा जल। देवेन्द्र के मन में यह बात बैठ गई उसने मन ही मन कहा कि क्यों न इसे आजमा कर देख लिया जाए। दूसरे दिन से ही वह स्नान कर गांव के चबूतरे पर स्थित शिवलिंग पर एक लोटा जल चढ़ाता और काम पर निकल जाता, यह दिनचर्या उसकी रोज की थी। गांव में बना वह चबूतरा दूसरे टोले पर था दोनों टोलों के बीच एक किलोमीटर की दूरी थी।
देवेन्द्र ने पंडित जी की उस बात को गांठ बांध लिया था जब तक वह शिव जी पर जल न चढ़ाता मुंह में अन्न नहीं डालता था। साकारात्मक विचार और क्रिया से उसके जीवन में बदलाव आने शुरू हो गये थे अब वह खेत में और मजदूरी करने की जगह पर बड़े मनोयोग से कार्य करता। देवेन्द्र मां को भी कहता मां अब तुम ठीक हो जाएगी शिव जी सभी समस्याओं को हल करेंगे। साकारात्मक बातें सुनकर उसकी मां भी अब पहले से अच्छा महसूस करने लगी थी।
समय गुजरते गया नकुल भी पास के शहर से बारहवीं उत्तीर्ण कर चुका था और वह भी अपने भाई के सहयोग के लिए काम कि तालाश में था। गर्मी का दिन था देवेन्द्र सुबह कुछ जरूरी कार्य हेतु पास की बाजार गया था वहां से लौटते हुए उसे देर हो गई थी। सुबह से कुछ खाया नहीं था क्योंकि उसने शिव जी पर जल चढ़ाए बिना बाजार चला गया था। घर पहुंचकर देवेन्द्र स्नान कर एक लोटा जल लिए दूसरे टोले पर स्थित शिवलिंग पर जल चढ़ाने निकला कुछ दूर चला ही था की उबड़-खाबड़ रास्ते पर आ रही एक कार में सवार व्यक्ति ने उसे रोककर कहा भाई बहुत जोर की प्यास लगी है पानी पिला दो बड़ी कृपा होगी।
देवेन्द्र ने कहा भाई जरुर पिला दूंगा पहले मैं यह जल चढ़ाकर आ जाऊं। उस व्यक्ति ने कहा शायद तब तक मेरे प्राण न बचें कृपा कर यह जल मुझे पिला दो। देवेन्द्र ने एक पल सोचा और फिर निर्णय लिया की ठीक है इस जल को इसे पिला देता हूं फिर लोटा धो मांजकर शिवजी के लिए जल ले जाऊंगा। देवेन्द्र ने लोटा का जल उसे दे दिया। उस आदमी ने जल पीकर अपनी प्यास बुझाई और उससे कहा। भाई तुमने आज मेरी जान बचाई है अगर पानी न पिलाते तो शायद मैं मर जाता।
अब बताओ मैं क्या कर सकता हूं। देवेन्द्र ने कहा फिल्हाल मेरा लोटा मुझे दें मैं जाकर इसे धो मांजकर जल ले कर जाऊं और शिवजी पर चढ़ाऊं। फिर मुझे मजदूरी करने भी जाना है आज ऐसे ही विलंब हो गया आधे दिन की मजदूरी तो काट ही ली जायेगी। ऐसा कह देवेन्द्र लोटा लेकर अपने घर तरफ लौट चला पीछे पीछे वह व्यक्ति भी अपनी गाड़ी से उसके घर तक पहुंच गया। देवेन्द्र बिना कुछ बोले लोटा धोकर उसमें जल ले शिवजी पर चढ़ाने चला गया। उधर से लौटा तो देखा वह व्यक्ति अभी भी उसके घर के पास ही गाड़ी में बैठा था।
देवेन्द्र के पहुंचते हीं वह कार से उतरा और फिर कहा आपने मेरी जान बचाई है बताइए मैं आपको क्या सहायता कर सकता हूं। देवेन्द्र ने कहा दोपहर का समय है ऐसे ही विलंब हो गया है पहले भोजन कर लीजिए फिर कुछ कहुंगा। देवेन्द्र ने उस व्यक्ति को भी साथ में भोजन कराया। यूं तो भोजन उसके मन लायक़ नहीं था फिर भी वह देवेन्द्र का अहसान में पड़ा भोजन करना पड़ा। भोजन के बाद उस व्यक्ति ने फिर कहा आपने मेरी जान बचाई है बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं? देवेन्द्र ने कहा अगर कुछ करना चाहते हैं तो यह मेरा भाई नकुल है बारहवीं तक पढ़ाई की है इसे कहीं कोई नौकरी के लिए सिफारिश कर दीजिए। व्यक्ति ने कहा और आपके लिए। देवेन्द्र ने कहा मैं तो मेहनत मजदूरी और अपनी छोटी सी जमीन में परिश्रम करता ही हूं फिर भी आप जैसा उचित समझें कर सकते हैं।
उस व्यक्ति ने कहा देखिए मेरा नाम शंभूनाथ है आपके पास वाले शहर में मेरा कारखाना है आप दोनों भाई कल से आकर वहीं काम कर सकते हैं। और हां शहर में ही शक्ति नाम का मेरा अस्पताल भी है अपनी मां को लेकर कल वहां आप आ जाना इनका इलाज मुफ्त में हो जाएगा।
देवेन्द्र ने उस व्यक्ति को हाथ जोड़ लिया और कहा आपने तो मेरी सारी समस्याएं ही हल कर दी।
व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा ‘सारी समस्याओं का हल एक लोटा जल।’
नोट : इस लघु कथा के लेखक राकेश कुमार पांडे, जमशेदपुर के दि ग्रेजुएट स्कूल-कॉलेज फॉर वीमेन में सहायक प्राध्यापक पद पर कार्यरत है. साथ ही एक रंगकर्मी भी हैं.