- जनवादी लेखक संघ के होली मिलन में जुटे कवि
- हिंदी के साथ भोजपुरी में भी खूब बही शब्दों की रसधार
जमशेदपुर.
जनवादी लेखक संघ सिंहभूम का होली मिलन सह काव्य गोष्ठी रिवेट कॉलोनी डिमना में अशोक शुशदर्शी और डॉ लक्ष्मण प्रसाद के संयुक्त अध्यक्षता में हुई. कार्यकारिणी सदस्य एवं कवि अजय मेहताब ने होली को प्रेम, उल्लास और भारतीयता का त्योहार कहा.
धीरेंद्र प्रसाद ने कवियों का स्वागत करते हुए साहित्य को आज की जरूरत कहा और प्रसन्नता व्यक्त की.
सरस्वती वंदना के बाद युवा कवि वरुण प्रभात के कुशल संचालन में काव्य गोष्ठी परवान चढा और श्रोता भी अभिभूत हुए. सुरेश दत्त पांडे ‘प्रणय’ ने प्रकृति और बुजुर्गों से जुडी विशिष्ट कविता पढी. डॉ लता मानकर ने सभी कवियों की रचनाओं की भूरी-भूरी प्रशंसा की और धन्यवाद ज्ञापित किया.
कवियों की पंक्तिया
- काहे लगवलू कजरवा हो बसंत आ गइल आगंनवा – शकुन्तला शर्मा
- फागुन के आइल बहार बा सजनजी – विजय बेरुका
- बसंत की उमंग है मलय संग संग है – माधवी उपाध्याय
- उम्र का जब होता है अवसान झेलना नहीं है आसान – सुरेश चन्द्र झा
- जय श्री झूठ हरे, जे बोले सुख पाए नित संदूक भरे – मामचन्द अग्रवाल
- किस कदर टूट के चाहा है तुझे तेरी कसम, मेरी चाहत का नहीं तुझ पे असर जाने दो – नजीर अहमद
- जाने कबतक किसे नचाएगी, ये है सरकार या मदारी है – डॉ लता मानकर
- रंगों को भी इन्तजार है किसी के गालों पर लग जाने की – रमेश हंसमुख
- फरवरी-मार्च का मौसम न जाने क्यूं नशीला है, कि प्रकृति जब नई सी हो तो लिख ले यार होली है – डॉ उदय हयात
- सच है क्या आना तुम्हारा, तुम ऐसे ही आते हो हर बार, जश्न के नाम पर एक त्रासदी लेकर ? – वरुण प्रभात
- वह तराशा गया बन गया सुन्दर, उसमे प्राण फूंके गए, नारे लगे, वो मौन रहा, विरोध किया – अशोक शुशदर्शी
- ‘एहे सांच रे’ इयाद जेकर त जहर घोल दे – डॉ लक्ष्मण प्रसाद