डॉ पुरुषोत्तम कुमार. जमशेदपुर.
क्या हुआ भला, क्या हुआ बुरा
क्या रखा इस नादानी में
कौड़ी की चिंता करने में
हीरा बह जाता पानी में
जो मिला उसी से प्रमुदित हो
सुरभित जीवन हो जाएगा
जो नहीं मिला तेरे हित था
आनंद छिटक कर आएगा
कुछ पाने को तपना हो तो
अपने को नहीं बचा रखना
सफल नहीं हो पाए तो
परम तृप्ति से भर जाना
चलने में जो पुलक छिपा है
उसे होश से भर देना
मानो मंजिल मिल जाए तो
फले वृक्ष सा झुक जाना
अहंकार जब कभी पकड़ ले
आहिस्ता पलकें ढक लेना
निराकार के सागर में
चुपचाप नहा कर आ जाना
निर्विचार प्रज्ञा पाकर ही
मन की पीड़ा मिट पाती है
कोई आहत तुमसे हो तो
मुस्का कर उसे मना लेना
तेरी काया उसकी काया में
एक अखंड ही रहता है
खेल मिला कुछ करने को
निर्विकार पूरा करना
राजा का रोल मिला हो तो
सच में मत राजा हो जाना
कुटिल,कृपण, दुराचारी बनकर
जीवन को मत अपनाना
खेल मिला हो तुच्छ पात्र का
जीवन को तुच्छ नहीं करना
तुलना में कभी नहीं जीना
हीन भाव से मत भरना
राजा हो या रंक यहां पर
कुछ पल ही नाटक चलता है
नेपथ्य छिपा है निर्देशक
पटाक्षेप वह करता है।
डॉ पुरुषोत्तम कुमार वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी, (प्रवर कोटि) संयुक्त निदेशक (राजभाषा) स्तर तथा एसोसिएट प्रोफेसर, AcSIR के पद पर कार्यरत हैं.
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