- जनजातीय गौरव वर्ष और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में सीएसआईआर एनएमएल में जनजातीय विरासत का जश्न कार्यक्रम में शामिल हुए शिक्षा मंत्री
- चाईबासा, बोकारो और दुमका में भी खुलेगा नेतरहाट की तर्ज पर स्कूल, सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की संख्या होगी दोगुनी, हर जिले में खुलेगा कृषि महाविद्यालय : शिक्षा मंत्री
- शिक्षा मंत्री बने शिक्षक, लगाई क्लास और विद्यार्थियों से पूछा बताओ झारखंड नाम किसने रखा
- स्कूली शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, ड्रॉप आउट जैसे मुद्दों पर खुल कर बोले
- राजनीति मुद्दों पर मुखर होकर बोले, कहा झारखंड किसी दूसरे के भरोसे नहीं चलेगा, इसे हमलोग ही चलाएंगे
- जनजातियों की स्थिति पर जताया अफसोस, कहा आजादी के 75 वर्ष बाद भी उपेक्षित है समाज, समीक्षा की जरूरत
आदिवासी, जनजातीय विद्यार्थियों को तकनीकी रूप से दक्ष करने और उन्हें सीधे रोजगार से जोड़ने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है. इसको लेकर हर स्तर से विद्यार्थियों को तकनीकी शिक्षा देने के लिए संस्थान खोले जा रहे हैं. इंडो डेनिस टूल रूम (आईडीटीआर) की तर्ज पर जमशेदपुर या आदित्यपुर में एक और संस्थान खुलेगा. इसकी स्वीकृति हो गई है, यह बातें राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने कही है. उन्होंने यह भी बताया कि नेतरहाट की तर्ज पर चाईबासा, बोकारो और दुमका में आवासीय विद्यालय खोले जाएंगे. वर्तमान में राज्य में 80 सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस है इसकी संख्या दोगुनी होगी. हर प्रखंड में सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस खोलने की योजना है. उन्होंने बताया कि हर जिले में कृषि महाविद्यालय की स्थापना की जाएगी, ताकि यहां के विद्यार्थी कृषि कार्य में दक्षकता के साथ अपने कार्य को करें और स्वरोजगार स्थापित करें. पहले से संचालित कृषि महाविद्यालय को और भी सुदृढ़ और क्रियाशील करने की बात मंत्री ने कही.
सीएसआईआर-एनएमएल में “जनजातीय विरासत का जश्न” कार्यक्रम में शामिल हुए शिक्षा मंत्री
बुधवार को जनजातीय गौरव वर्ष और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में सीएसआईआर-एनएमएल में “जनजातीय विरासत का जश्न” कार्यक्रम के दौरान बोल रहे थे. ड्रॉप आउट और पैसे के अभाव में पढ़ाई छूट जाने को उन्होंने एक बड़ी समस्या बताया और कहा कि उनकी सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से यह प्रयासरत है कि बच्चों की पढ़ाई किसी हाल में न छूटे. शिक्षा मंत्री ने जनजातीय समुदाय से आए विभिन्न स्कूली बच्चों से शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में आने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि समाज के बच्चें पढ़ेंगे तब ही तो वैज्ञानिक, डॉक्टर बनेंगे. इसके पूर्व शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन, सीएमइआई दुर्गापुर निदेशक डॉक्टर नरेश चंद्र मुर्मू और एनएमएल निदेशक संदीप घोष चौधरी ने फीता काटकर एग्जीविशन और दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया. जनजातीय बच्चों और विद्यार्थियों में वैज्ञानिक सोच और जिज्ञासा के प्रति प्रेरित करने के लिए सीएसआईआर एनएमएल के कार्यों की मंत्री ने खूब प्रशंसा की. उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि स्कूल में पढ़ाई और यहां प्रैक्टिल में देखना और सीखना एक बड़ा अनुभव है. इस मौके से कोई नहीं चुके. कार्यक्रम में 10 विद्यालयों से 300 जनजातीय समुदाय के विद्यार्थी शामिल हुए थे.
शिक्षक बने शिक्षा मंत्री, विद्यार्थियों से पूछे सवाल, कहा सफलता के लिए मंजिल तो तय करना ही होगा
ट्रेन में चढ़ने के पहले स्टेशन तो तय करना होगा, नहीं तो भटक जाएंगे. यह बातें शिक्षा मंत्री ने सीएसआईआर एनएमएल सभागार में मौजूद आदिवासी समुदाय से आए विभिन्न स्कूली बच्चों को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा बगैर मंजिल और लक्ष्य निर्धारित किए सफलता पाना मुश्किल है.
वहीं कार्यक्रम में शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन एक शिक्षक की भूमिका में नजर आए. अपने भाषण के दौरान वे मंच से कार्यक्रम में मौजूद स्कूली बच्चों से झारखंड के नाम और उससे संबंधित कई सवाल पूछे? मंत्री रामदास सोरेन न केवल सवाल ही पूछे बल्कि उन्होंने उन सवालों का जवाब भी काफी रोचकपूर्ण ढंग से दिया. उन्होंने सबसे पहले बच्चों से झारखंड नाम रखने के पीछे का कारण और यह नाम किसने रखा इसको लेकर सवाल किया. यह काफी रोचक सवाल था, क्योंकि सभागार में मौजूद अधिकतर विद्यार्थी इसके जवाब से अंजान थे. मंत्री ने बताया कि झारखंड प्रदेश का नाम चैतन्य महाप्रभु ने रखा था. शिक्षा मंत्री ने कहा कि चैतन्य महाप्रभु और उनकी पत्नी पिंड दान के लिए निकले थे. अपनी यात्रा के दौरान वे इस दिशा में आए थे. यहां के लोगों के रहन-सहन, वेशभूषा और पहनावा देखकर उन्होंने इसे झारखंड नाम दिया था.
आजादी के 75 वर्ष बाद भी जनजातियों की स्थिति खराब, उपेक्षित है समाज, समीक्षा की जरूरत
मंत्री रामदास सोरेन ने अपने भाषण की शुरूआत यह कहते हुए अफसोस जताया कि देश में आदिवासियों की स्थिति काफी खराब है. आजादी के 75 वर्ष बाद भी यह समाज उचित विकास और अवसर से वंचित है. इसको लेकर समीक्षा करने की जरूरत है. उन्होंने राज्य में पिछले 20 वर्ष सरकार में रही पार्टी की ओर भी इशारा किया कि पिछली सरकारों ने जनजातियों के उत्थान पर ध्यान नहीं दिया.
झारखंड की स्थापना और वीर शहीदों के बहाने राजनीति बातें भी कही
मंत्री रामदास सोरेन ऐसे तो सीएसआईआर एनएमएल में एक शैक्षणिक कार्यक्रम में आए थे, लेकिन वे खुद को राजनीति भाषण देने से रोक नहीं पाए. बाबा तिलका मांझी, बिरसा मुंडा, सिद्धो कान्हू व अन्य वीर सपूतों के बलिदान, संघर्ष और झारखंड आंदोलन की बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह राज्य दूसरे के भरोसे नहीं चलेगा, इसे हमलोग ही चला सकते हैं. उन्होंने कहा झारखंड भीख में नहीं मिला है और न ही खरीद कर मिला है. यह संघर्ष, बलिदान और दिशोम गुरु शिबू सोरेन के संघर्षों से मिला है. उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, चंपाई सोरेन का भी नाम लेते हुए कहा कि हम सभी एक साथ झारखंड के आंदोलन में शामिल थे.
विज्ञान, शोध और अनुसंधान शिक्षा पर डॉ नरेश चंद्र मुर्मू ने डाला प्रकाश
कार्यक्रम में बतौर सम्मानित अतिथि शामिल हुए सीएमइआई दुर्गापुर निदेशक डॉक्टर नरेश चंद्र मुर्मू ने अपने संबोधन और पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन से यह बताने का प्रयास किया कि विज्ञान,शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में करियर के ढेरों विकल्प है. लेकिन विद्यार्थी महज पारंपरिक पढ़ाई इंजीनियरिंग और चिकित्सीय पढ़ाई को प्राथमिकता देते हैं. जबकि विज्ञान में शोध, अनुसंधान के क्षेत्र में कई ऐसे कोर्स हैं, जिसके माध्यम से रुचिकर शिक्षा के साथ आसानी से रोजगार प्राप्त किया जा सकता है. कार्यक्रम में स्वागत संबोधन एनएमएल के निदेशक डॉ संदीप घोष चौधरी ने दी. वहीं वरीय वैज्ञानिक द्वारा सीएसआईआर एनएमएल की ओर से किए जा रहे कार्य और स्कूली बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करने के लिए जिज्ञासा कार्यक्रम के बारे में पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन और वीडियो स्लाइड के माध्यम से जानकारी दी गई. कार्यक्रम में अतिथियों का परिचय प्रमुख वैज्ञानिक व अनुसूचित जाति जनजाति प्रतिनिधि डॉ मनोज एम हुमने ने दिया जबकि धन्यवाद ज्ञापन सीएसआईआर एनएमएल के एडमिनिस्ट्रेटिव कंट्राेलर आदित्य मैनाक ने दिया.